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ज़मीं पर हक़ का सवाल,बेदखल होते एससी-एसटी

LOK SAMWAD
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देहरादून, राजधानी के पछ्वादून परिक्षेत्र में दो दर्जन से ज्यादा गावों की हज़ारो हेक्टियर ज़मीन के मालिक बोक्सा जनजाति और हरिजन समुदायों के लोग ज़मीं से बेदखल हो दिहाड़ी के मजदूर हो कर रह गए हैं । विकास योजनाओं तथा आबादी के बढ़ते दबाव की मांग ने भूमि हस्तांतरण मामलो में तेजी ला दी है जिसने इस क्षेत्र की जनसांख्यकी के स्वरुप को बदल दिया है ,जिसका असर राजनितिक समीकरणों पर स्वाभाविक तौर पर पड़ेगा । किन्तु मिल रही सूचनाये इससे इतर आसन्न सामाजिक और राजनितिक सवालों के खड़े होने के संकेत भी दे रही हैं । समाज में बदलते आर्थिक समीकरणों की यह विडम्बना ही है कि जिस आरक्षण का सहारा ले कर ,आर्थिक ,सामाजिक ,और शैक्षिक तौर पर सशक्त हो गए लोग,उनकी सुरक्षा के लिए बने प्रावधानों की आड़ में अपने ही समाज के कमजोर परिवारों को उनकी ज़मीन से बेदखल करने में लगे हैं ।जानकारी के मुताबिक़ सत्तारूढ़ पार्टी के राजनितिक गल्यारे में मज़बूत रसूक रखने वाले एसटी और एससी समुदाय के दो -चार लोग असंक्र्मनिय भूमि की खरीद -फरोख्त में लगे हैं । विकास नगर और सहसपुर विधान सभा क्षेत्र में दलित तथा बोक्सा जनजाति केएक अनुमान के अनुसार 45000 लोग सिंघनिवाला ,चक्मनसा ,शेरपुर ,सभावाला .तिरपुर ,डांडीपुर ,मेदनीपुर ,प्रतीतपुर ,अद्दुवाला ,धर्मवाला ,भूडपुर ,धूलकोट आदि गावों के बोक्सा और झिंवरहेड़ी ,नाथूवाला ,सभावाला ,कांडोली ,जीवनगढ़ ,बनियावाला ,केहरि ,बड़ोवाला आदि गावों के हरिजन सदियों से निवास करते आ रहे हैं । जिनमे से ज्यादातर आबादी छोटी जोत के सहारे गुजर -बसर करती रही हैं । उनकी इसी कमजोरी का लाभ उठाते हुए संपन्न एसटी और एससी नेताओ ने उनकी ज़मीनों को औने -पौने दामो में खरीद कर एकत्र भूमि को बेचने का धंधा अपना लिया है । बोक्सा समुदाय से खरीदी गई ज़मीनों को पहाड़ से स्थानांतरित हो कर देहरादून बस रहे संपन्न जौनसारी ,भोटिया और मारछा लोगो को बेचीं जा रही है । वहीँ दलित समाज से खरीदी गई ज़मीन ऊँचे दामो में बाहर से आ रहे बिल्डरों को बेचीं जा रही है । सामान्यत: भू -स्वामित्व परिवर्तन के इस खेल में कोई खोट नज़र नहीं आता । परन्तु जब सामाजिक और राजनितिक कार्यकर्ताओ से विषय पर चर्चा की गई तो परिणामो की गंभीरता का एहसास होता है । सहसपुर के अनेक गाँव जो बोक्सा जनजाति से आबाद थे,खाली हो गए है । दलितों की भूमि पर और ही लोगो का अधिकार हो गया है । हाँलाकि ,यह खेल परस्पर सहमती और सरकारी मशीन से मिलीभगत से मौजूदा कानूनों की आड़ में हो रहा है ,पर इसके परीणाम स्वरुप लगभग 25 -26 हजार हैक्तियर भूमि पर से इस विस्थापन ने ग्रामसभा से ले विधानसभा तक के सभी पदों के चुनाव परिणाम तय करना इन समुदायों के हाथ से निकल जौनसारी और अन्य क्षत्रो के लोगो के अधिकार में आ गया है । क्षेत्र के राजनितिक कार्यकर्ताओं का तो यहाँ तक कहना है कि संपन्न हो गए जौंसारियो ,भोटियो और मारछाओं के दबदबे ने राज्य के बोक्सा और थारू जनजाति को ज़मीन से ही नहीं बाकी अधिकारों से बेदखल कर दिया है । राजकीय सेवाओं में इनकी संख्या न के बराबर है । केंद्र से स्पेशल कम्पोनेंट प्लान के तहत ग्राम्य विकास और समाज कल्याण की सभी योजनाओं से ये इन समुदायों को वंचित होना पड़ा है । इन योजनाओं के तहत आने वाला धन गावों में जनसंख्या स्वरुप के बदल जाने से उनकी विकास योजनाओं में न लग कर अन्यत्र प्रयोग होरहा है। अपनी आर्थिक और शैक्षिक कमजोरियों के इनकी राजनैतिक ताकत भी समाप्त प्राय हो गई जिस कारण उनकी समस्याओं के समाधान पर किसी का ध्यान नहीं जाता । सहसपुर और विकासनगर के राजनैतिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि जौनसारी अपनी राजनैतिक हैसियत के कारण जनप्रतिनिधित्व कानून को धता बता कर दो स्थानों की मतदाता सूची में शामिल रहता है और जरुरत पड़े पर अपने सवर्ग के प्रत्याशी को वोट करने वहां चले आते है । इनके क्षेत्र में बाहर का निवासी ज़मीन नहीं खरीद सकता किन्तु ये लोग कहीं भी कृषि और गैर कृषि भूमि खरीद कर वहां की सामाजिक ,राजनैतिक और आर्थिक संतुलन के समीकरणों को बिगाड़ देने में प्रभावी भूमिका में आ गए है । -सुरेन्द्र सिंह आर्य

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