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स्वछन्द परिंदा मन ! ! ! घोंसले से जो उड़ा तो आज मशहूर गीतकार ,कांग्रेस नेता और प्रख्यात समाजसेवी विट्ठल भाई पटेल के जीवन पर फोकस पुस्तक “झूठ बोले कौव्वा काटे ” पार जा बैठा। इससे पूर्व मैने झूठ बोले कौव्वा काटे ,जीना यहाँ -मरना यहाँ ,न मांगू सोना चांदी ,न मांगू हीरा मोती ,किसी की मुस्कराहटों पर हो निसार जैसे सदाबहार फ़िल्मी गीतों के रचियता को जानने की कभी कोशिश नहीं की थी। यह संयोग भर था कि आज पांडे घाट की ओर निकलते समय सरस्वती सुमन मासिक पत्रिका के सम्पादक और मेरे बड़े भाई आनंद सुमन सिंह से मुलाक़ात हुई और यह पुस्तक हाथ लगी।
स्वछन्द परिंदा मन ज्यों -ज्यों एक डाल से दूसरी डाल कूदता -फांदता गया ,विट्ठल के मोहपाश बंधन में जकड़ता गया। सिर्फ इसलिए नहीं कि उन्होंने ४० से ज्यादा सुपर हीट फिल्मों को गीत दिए। बल्कि इसलिए कि मुझे उनमे पंडित मदन मोहन मालवीय और सर सय्यद अहमद की उस लोक- उन्मुखी कांग्रेस परंपरा के दर्शन हुए जो आज लुप्त प्राय है।
आज जबकि यह धारणा जनता में घर कर गई है कि राजनेता और नौकरशहा बिना सोना चांदी मांगे कदम आगे नहीं बढाते ,विट्ठल भाई पटेल ने खंडवा मध्य प्रदेश में एक रुपया अभियान चला कर हरफनमौला गायक किशोर कुमार की समाधि का निर्माण कराया। सभ्य और शिक्षित समाज के रहते चारो और फैली गन्दगी के विरुद्ध जन भागिता के बूते देश के इतिहास में ५५० दिन चला अनूठा सफाई अभियान के वें सूत्रधार बने। मन सोचता रहा “कहाँ चले गए ऐसे लोग, क्यों कांग्रेस हुई वीरान, ढूंढे नहीं मिलता ऐसा इंसान ”
भारतीय जीवन दर्शन को सरल शब्दों में फ़िल्मी गीतों के माध्यम से जन -जन तक पहुंचा देने वाला यह शख्स मध्य प्रदेश सरकार में उद्ध्योग मंत्री भी रहा ,फिर भी निशकलंक। ऐसे कर्मयोगी को क्यों न करे कांग्रेसी शत -शत सलाम।
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