Menu
blogid : 10665 postid : 736443

धर्म और जाति लोकतंत्र के कल्याणकारी औज़ार नहीं हो सकते।

LOK SAMWAD
LOK SAMWAD
  • 18 Posts
  • 26 Comments

संसद चुनाव को लेकर मचे घमासान से विषाक्त हो रहे जनमानस के पारस्परिक सम्बन्ध और बढ़ती अविश्वास की खाई के इस दौर में जहां धर्म और जाति को हथियार बना लोकतंत्र का युद्ध लड़ा जा रहा हो, एक लोक उक्ति सटीक बैठती है कि ,राणा सांगा बाबर से युद्ध लड़ रहा था और युद्ध भूमि के पास ही किसान युद्ध से निर्लिप्त खेत जोत रहे थे। वह राजाओं के बीच युद्ध था। युद्ध लड़ना राजाओं का काम है। इससे प्रजा का कोई लेना देना नहीं था। वह तो इस आदर्श वाक्य का अनुशरण करती थी कि को होइ नृप हमें क्या हानि। आज भी कमो बेस वही स्थिति आ पहुंची है।
लोकतंत्र के महोत्सव के चरम पर आते -आते चुनाव का परिदृश्य दो -चार राजनितिक घरानो के बीच व्यक्तिगत घृणित आरोप -प्रत्यारोपों का अस्वीकार्य उत्सव बन गया है। समूचे परिदृश्य से लोकहित चिंता और राष्ट्र निर्माण के संकल्प गायब हैं। परस्पर कटुता इतनी बढ़ चुकी है कि आज, 25 नवबर 1949 को संविधान सभा की बैठक में डॉक्टर भीम राव् आंबेडकर द्वारा व्यक्त चिंता को उन्ही के शब्दों में स्मरण हो आई है। उन्होंने कहा था कि –
” —26 जनवरी 1950 को भारत एक स्वतंत्र देश बन जाएगा। क्या होगा उसकी स्वतंत्रता का ?क्या यह स्वतंत्रता बची रहेगी या भारत फिर स्वतंत्रता खो देगा ?यह विचार (चिंता )मुझे भारत के भविष्य के प्रति चिंतित कर रहा है। मुझे सबसे ज्यादा यह बात परेशान करती है की भारत ने पहले जो स्वतंत्रता खोयी थी ,वह उसके ही कुछ लोगो के विश्वासघात का परिणाम थी। ——-क्या इतिहास स्वयं को दोहराएगा ?यह चिंता इस बात से और गहरी हो जाती है की जातियों और पंथों के रूप में हमारे पुराने शत्रुओं के साथ अब बहुत से ऐसे राजनितिक दल भी हो जायेगें जो परस्पर विरोधी हैं। क्या भारतीय पंथों को ,दलों को देश से अधिक महत्व देंगे अथवा देश को पंथों और दलों से ,मैं नहीं जानता। लेकिन यह तय है की यदि दल अथवा पंथ को देश से अधिक महत्व देंगे तो हमें स्वतंत्रता दूसरी बार खतरे में पड़ जायेगी और शायद हम उसे हमेशा के लिए खोदें। ” हम भारतियों को अवश्यम्भावी खतरे के प्रति चेताते डॉक्टर बाबा साहेब के इन शब्दों से क्या हम सबक लेगें ?

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply