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मिडिया संस्थानों और उनसे जुड़े व्यक्तियों की विश्वसनीयता पर उठाते सवाल लोकतंत्र के चौथे खम्बे को खोखला करे दे रहे हैं। सामाजिक बदलाव और सूचना क्रांति का यह उपकरण भौंतरा हो जग हंसाई का रहा है।
मिडिया की विश्वसनीयता पर कटाक्ष करता ताज़ा जुमला नरेंद्र मोदी ने उन्हें ,जो उनके अनुकूल नहीं हैं ,” न्यूज़ ट्रेडर “की संज्ञा दे कर किया है। पिछले दो दिन से एग्जिट पोल ,चुनाव दौरान ख़बरों की प्रस्तुति ,पक्ष पात करते शब्दों का चयन ,एडवरटोरिअल ,और पेड न्यूज़ जैसी विधा की आड़ में समाचार पत्रों और टी वी चेनल्स के तौर- तरीको पर हुई बहस में लोग अब मिडिया को निष्पक्ष नहीं मान रहे है।
बहस में शामिल रहे अनेक साथियों का यह मानना हैं कि यदि न्यूज़ कोमोडिटी है तो उसकी बनावट और रंग सज्जा अधिक से अधिक लाभ अर्जित करने की दृष्टि से ही की जाएगी। उसमे समाचार की प्रमणिकता के लिए कोई जगह नहीं है ,उसका स्वरूप समाचार जैसा होना ही प्रयाप्त है। किन्तु रोज़ ही चर्चाओं और बहस में शामिल होने तथा नियमित रूप से कईं अखबार पढने वाले लोग अब समाचार के प्रायोजित ,फिलर ,डेस्क न्यूज़ -स्टोरी के अंतर को समझने लगे हैं।
अधिकांश राजनितिक कार्यकर्ताओं की चर्चाओं में ” मिडिया मैनेज ” कर मन चाही तस्वीर और खबर छपवा लेने को नेता का एक विशेष गुण माना जा रहा है। और इसके लिए गलत रस्ते से धन की जुगत पर ध्यान केंद्रित हो चूका है। चाय घरो की बहस में अनेक साथी कई उन घटनाओं और आप बीती बातों का जिक्र करते हैं जिससे सुनने वाले के मन में मिडिया की विश्वसनीयता पर शंका होती है। लोगो ने स्थानीय कुछ समाचार पत्र /टीवी चैनल के छद्म शब्दावली के प्रयोग ,सरकार और पार्टियों से बड़े पैकेज ले कर उसी हिसाब से समाचार घड़ेजाने के आरोप लगाये हैं।
अनेक चर्चाओं में किसी पत्र के रिपोर्टर के ” एनकैश ” होने ,प्रबंधक को मोटी गिफ्ट दिए जाने के मामले लोग उठाते रहे हैं। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि अख़बारों और चेनलो की संख्या बढ़ जाने के बावजूद ज्यादातर को गंभीरता से पढ़ा ही नहीं जाता। मैं स्वयं पत्रकारिता से जुड़ा रहा तो उसके बाज़ारू हो जाने ,फ़ोर्थ एस्टेट के रियाल स्टेट धंधे में बदल जाने से तकलीफ होती है। किन्तु आज का सच यही है कि मिडिया संस्थानों को सच जीवित रख विश्वसनीयता बनाये रखने से कही ज्यादा जरुरी बाज़ार की गलाकाट प्रतिस्पर्धा मे अपने अस्तित्व बचाये रखना हो गया है। उसके लिए वह किसी भी हद तक जा रहा है जैसे सत्ता के खिलाडी।
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